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अलवर में पांडुपोल और भर्तृहरि मेला शुरू, भूपेंद्र यादव ने किया उद्घाटन, कल अवकाश घोषित

राजस्थान के अलवर जिले में पांडुपोल और भर्तृहरि का लक्खी मेला सोमवार (9 सितंबर) से शुरू हो गया है. मेले को देखते हुए 10 सितंबर को जिला प्रशासन ने अवकाश घोषित किया है.

अलवर में पांडुपोल और भर्तृहरि मेला शुरू, भूपेंद्र यादव ने किया उद्घाटन, कल अवकाश घोषित
मंत्री भूपेन्द्र यादव ने किया पांडुपोल और भर्तृहरि मेले का उद्घाटन

Rajasthan News:  अलवर में पांडुपोल हनुमान मंदिर मेला सोमवार से शुरू हो गया है. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और वन राज्यमंत्री संजय शर्मा ने मेले का उद्घाटन किया. इस दौरान दोनों ने मंदिर में पूजा अर्चना की और महाआरती में भी शामिल हुए. पांडुपोल मेले के अलावा भर्तृहरि महाराज के लक्खी मेले का भी सोमवार को ही उद्घाटन किया गया. मंत्री भूपेंद्र यादव और संजय शर्मा सरिस्का गेट से पांडुपोल मंदिर तक खुली जीप से पहुंचे. इस दौरान मंत्री ने जंगल में वन और वन्यजीवों का निरीक्षण किया. 

जिला प्रशासन ने किया अवकाश घोषित

पांडुपोल मंदिर के महंतों ने हनुमान जी की पट्टीका पहनाकर मंत्रियों का स्वागत किया. स्वागत के बाद मंत्रियों ने मंदिर में हनुमान जी की पूजा की और देश में खुशहाली की कामना की. पूजा अर्चना के बाद आरती में शामिल हुए और हनुमान जी के दर्शन किए. मेला शुभारंभ में मंत्रियों के साथ नगर निगम महापौर, जिला प्रमुख, सहित भाजपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी मौजूद रहे. इस मौके पर मंदिर कमेटी ने मंत्री को यहां की समस्याओं के बारे में भी बताया. जिसके बाद मंत्री ने कहा कि शीघ्र इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा कि पांडुपोल आने वाले किसी भी भक्तों को कोई परेशानी नहीं हो. पांडुपोल का मेला 10 सितंबर को भरेगा जिसके लिए जिला प्रशासन ने अवकाश घोषित किया है. साथ ही प्रशासन ने मेले में सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की है. 

200 साल पुराना है भर्तृहरिधाम

पांडुपोल हनुमान मंदिर के उद्घाटन के बाद मंत्री भूपेन्द्र यादव ने भर्तृहरि महाराज के लक्खी मेले का भी उद्धाटन किया. यह मंदिर अलवर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर अलवर-जयपुर मार्ग पर बना है. यह धाम अलवर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोगों की आस्था का केंद्र माना जाता है. भर्तृहरिधाम मंदिर 200 साल से भी ज्यादा पुराना है. पौराणिक कथा के अनुसार उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर अलवर की इस तपोभूमि पर समाधि ली थी. उनकी यही समाधि स्थल भर्तृहरिधाम के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर नाथ संप्रदाय से जुड़ा है, जिसके कारण नाथ संप्रदाय के साधु संत यहां दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं.

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