
मूल रूप से कैलिफोर्निया में पैदा होने वाली स्ट्रॉबेरी अब राजस्थान के झालावाड़ जिले में भी सफलतापूर्वक पैदा की जा रही है. यहां की स्ट्रॉबेरी की मांग बाहर के क्षेत्र में भी काफी है, ऐसे में यहां के किसान स्ट्रॉबेरी के उत्पादन में अपनी रुचि दिखा रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. झालावाड़ के लोग जहां पहले स्ट्रॉबेरी का फल सिर्फ चित्रों में ही देख पाते थे या बड़े शहरों में जाने पर की स्ट्रॉबेरी खरीदना संभव हो पता था, वही अब झालावाड़ के बाजारों में स्ट्रॉबेरी बड़ी आसानी से उपलब्ध है. वह भी एकदम ताजी, क्योंकि शहर के आसपास ही काफी किसान स्ट्रॉबेरी की पैदावार कर रहे हैं.
10 सालों की मशक्कत के बाद मिला सार्थक परिणाम
झालावाड़ के वानिकी एवं उद्यानिकी महाविद्यालय में लगभग 10 साल पहले स्ट्रॉबेरी को लेकर नवाचार और प्रयोग शुरू किए गए. यहां के डीन डॉक्टर आईबी मौर्य के सानिध्य में स्ट्रॉबेरी को लेकर प्रयोग और प्रशिक्षण शुरू किए गए जो आज पूरी तरह से सफल हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि स्ट्रॉबेरी अब पॉलीहाउस से बाहर निकलकर खुले क्षेत्र में भी पैदा की जा रही है तथा 500 वर्ग मीटर में पैदा करने वाला किसान भी इससे लगभग एक लाख रुपए कमा रहा है.
तकनीक सीख कर किसान कमा रहे मुनाफा
वानिकी एवं उद्यानिकी महाविद्यालय के डीन डॉक्टर आईबी मौर्य ने बताया कि उनके द्वारा स्ट्रॉबेरी की विभिन्न किस्म को लेकर प्रयोग किए गए जिसमें स्ट्रॉबेरी की विंटर डाउन नमक किस्म का प्रदर्शन यहां के वातावरण में सबसे अच्छा था. उन्होंने बताया कि इस किस्म को लेकर आगे नवाचार किए गए और आज स्थिति यह है कि झालावाड़ जिले में मल्चिंग विधि द्वारा खुले खेतों में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन किया जा रहा है. महाविद्यालय में कृषकों के दल आते हैं जो यहां से तकनीक सीखकर अपने खेतों में स्ट्रॉबेरी की अच्छी पैदावार कर रहे हैं. डीन ने बताया कि महाविद्यालय में भी विद्यार्थियों द्वारा स्ट्रॉबेरी का उत्पादन किया जाता है जिसकी मार्केटिंग भी विद्यार्थी स्वयं करते हैं. ऐसे में विद्यार्थियों द्वारा मार्केटिंग किए जाने से झालावाड़ और उसके आसपास के क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी का एक बाजार डेवलप हुआ है जो किसानों को उनका उत्पादन बेचने में काफी सहायक सिद्ध हो रहा है.
400 ग्राम प्रति पौधा होता है उत्पादन
स्ट्रॉबेरी की कई किस्में होती हैं जिसमें स्वीट चार्ली और विंटर डाउन प्रमुख हैं. झालावाड़ में विंटर डाउन की पैदावार की जाती है, जिसमें फसल चक्र 6 महीने का होता है तथा प्रति पौधा लगभग 400 ग्राम स्ट्रॉबेरी की पैदावार होती है. स्ट्रॉबेरी का फल ज्यादा दिनों तक नही रखा जाता है ऐसे में फल तुड़ाई के तुरंत बाद इसके विपणन की व्यवस्था होनी चाहिए. इसीलिए शहर से सटे हुए क्षेत्र में इसका उत्पादन काफी फायदेमंद है, क्योंकि फल तोड़ने के तुरंत बाद स्ट्रॉबेरी के फलों को पैक करके शहरों में भेज दिया जाता है इसे खराब होने का खतरा नहीं रहता.
शीघ्र ही पौधों का भी होने लगेगा उत्पादन
झालावाड़ वानिकी एवं उद्यानिकी महाविद्यालय में फिलहाल पौधे नहीं बनाए जा रहे हैं. यहां लोगों को पौधे पुणे से मंगवाने पड़ते हैं. ऐसे में कई तरह के खतरे उत्पन्न हो जाते हैं. पौधा लेट हो जाए तो बुवाई के समय में देरी हो जाती है और उत्पादन प्रभावित होता है. पुणे से पौधे आने के चलते समय में ऊंचा नीच होती है जिससे किसानों को परेशानी होती है वानिकी एवं उद्यानिकी महाविद्यालय के डीन डॉक्टर आईबी मौर्य ने बताया कि उनके द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहे हैं कि पौधों का उत्पादन भी यही होने लग जाए. उन्होंने कहा कि लगातार प्रयोग किया जा रहे हैं जिनके परिणाम सार्थक हैं. डीन ने बताया कि शीघ्र ही पौधों का उत्पादन भी यहीं पर होने लगेगा जिससे किसानों की परेशानी खत्म हो जाएगी और वह स्ट्रॉबेरी उत्पादन से अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे.
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