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देश और समाज में परिवर्तन के प्रतिनिधि हैं शिक्षक

डॉ. सुधी राजीव
  • विचार,
  • Updated:
    सितंबर 05, 2025 12:14 pm IST
    • Published On सितंबर 05, 2025 11:58 am IST
    • Last Updated On सितंबर 05, 2025 12:14 pm IST
देश और समाज में परिवर्तन के प्रतिनिधि हैं शिक्षक

Rajasthan: राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में काफ़ी सुधार ज़रूर हुए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं. अभी हमें बहुत सारे और प्रयास करने होंगे. अभी भी बहुत सारी चुनौतियां हैं, विशेष रूप से प्राथमिक स्तर की स्कूली शिक्षा में. सबसे अहम बात है कि सरकारी स्कूलों में अब पहले की तरह ज़्यादा बच्चे पढ़ाई बीच में छोड़कर नहीं जाते. पिछले कुछ वर्षों में थोड़ी बहुत रिटेंशन बेहतर हुई है. अभी तो संख्या इतनी बढ़ गई है कि कई बार बैठने की भी जगह नहीं होती. दूसरी ओर, कई स्कूलों की इमारतें इतनी जर्जर हो चुकी हैं कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता होती है जो कि बिलकुल जायज़ है.

आज कोई भी माता-पिता अगर अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे तो सबसे पहले वे देखेंगे कि बच्चे सुरक्षित हैं या नहीं. स्कूलों के इंफ़्रास्ट्रक्चर को लेकर पिछले दिनों काफ़ी हंगामा हुआ. अगर हमने पहले इस पर ध्यान दिया होता तो शायद यह स्थिति नहीं आती. स्कूली इमारतों में सुधार हुए हैं और उसके लिए पैसे भी आए हैं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं हैं और उनसे सभी स्कूलों की देखभाल नहीं की जा सकती.

कुछ वर्ष पहले तो हालत इतनी बुरी थी कि स्कूलों में बैठने के लिए बेंच, कुर्सियां, टेबल भी नहीं थे. अभी थोड़ा बहुत सुधार ज़रूर हुआ है मगर वह इतना नहीं है कि माता-पिता निश्चिंत हो जाएं.

मैं एक एनजीओ के साथ जुड़ी हूँ और मैंने कुछ वर्षों पहले यह पाया था कि स्कूलों की संख्या तो बहुत है लेकिन उनके पास बैठने की और अन्य चीज़ों की सुविधाएँ नहीं है. कुछ वर्ष पहले तो हालत इतनी बुरी थी कि स्कूलों में बैठने के लिए बेंच, कुर्सियां, टेबल भी नहीं थे. अभी थोड़ा बहुत सुधार ज़रूर हुआ है मगर वह इतना नहीं है कि माता-पिता निश्चिंत हो जाएं कि उनके बच्चे सुरक्षित हैं.

प्राइवेट स्कूलों में स्थिति बेहतर है क्योंकि वे लाखों रुपये फ़ीस लेते हैं इसलिए उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि सुरक्षा का ध्यान रखा जाए. लेकिन एक दूसरी चुनौती अभी ये भी है कि बहुत सारे स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया जाता. ऐसे में आप स्कूलों में समग्र शिक्षा को कैसे हासिल कर सकते हैं? इसलिए स्कूलों में रैंप जैसी चीज़ें बनाने पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है.

पुरी में समुद्रतट पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृ्ष्णन की छवि बनाते सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक

पुरी में समुद्रतट पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृ्ष्णन की छवि बनाते सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक
Photo Credit: PTI

सरकार ही नहीं, समाज की भी ज़िम्मेदारी

इसके साथ ही हमारी स्कूली व्यवस्था में सरकारी और निजी स्कूलों में एक सामाजिक-आर्थिक भेदभाव भी दिखाई देता है. इसे दूर करने के लिए स्कूलों के प्रबंधन को ज़्यादा सक्रियता दिखानी चाहिए और बच्चों के माता-पिता से ज़्यादा संपर्क करना एक हल हो सकता है.

सरकार स्कूलों के लिए काम कर रही है, लेकिन पर्याप्त नहीं होती. ऐसे में हर चीज़ को सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. इसके लिए हमें और समाज को भी पहल करनी होगी. स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों की समितियां बनानी चाहिए और आपस में क्राउड फंडिंग कर स्कूलों को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए.

इसके अलावा एमपी और एमएलए फ़ंड के पैसे भी इन्हीं कामों के लिए होते हैं, इसलिए उनका भी इस्तेमाल करना चाहिए. अगर आपके बच्चे पढ़े-लिखे होंगे तो विकास अपने आप होगा. नई शिक्षा नीति के तहत संपूर्ण शिक्षा का लक्ष्य रखा गया है और उसे प्राप्त करने के लिए स्कूलों के बुनियादी ढाँचे को दुरुस्त करना होगा.

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शिक्षकों की छवि पर सवाल

शिक्षकों पर ध्यान दिया जाना भी महत्वपूर्ण है. उनकी ट्रेनिंग की व्यवस्था होनी चाहिए. समाज में शिक्षकों के प्रति नज़रिये में भी परिवर्तन की आवश्यकता है. पिछले दिनों अक्सर स्कूलों और शिक्षकों से जुड़ी नकारात्मक बातें सामने आईं जब कोई शिक्षक नशे में पाया गया या किसी और का कोई विवादित वीडियो सामने आया. इसकी वजह ये है कि आज हम जैसे समाज का हम निर्माण कर रहे हैं उसी की परछाईं हर ओर दिखाई दे रही है.

शिक्षक पहले भी रोल मॉडल होते थे और आज भी होते हैं. शिक्षकों ने बहुत सारे छात्रों की क्षमता को पहचानकर उन्हें सही दिशा और मार्गदर्शन दिया है. शिक्षण का काम एक बहुत ही शानदार काम है. शिक्षक शिक्षा देता ही नहीं है, अपने छात्रों से खुद भी शिक्षा लेता है. मुझे शिक्षक मेरे ही छात्रों ने बनाया कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. शिक्षक को यह नहीं समझना चाहिए कि वही ज्ञान का आदि और अंत हैं. लेकिन यह सच्चाई है कि अभी अपने काम को लेकर शिक्षकों में थोड़ी उदासीनता आ गई है.

किसी शिक्षक के स्कूल से जाने पर छात्रों के अक्सर रोने के वीडियो सामने आए हैं. ऐसी भावना तभी आती है जब शिक्षक अपने से बढ़ कर अपने स्टूडेंट्स को प्यार करता है, उन्हें बताता है कि सीखने का क्या महत्व है और शिक्षा कैसे आगे जाकर उनकी ज़िंदगी में काम आएगी.

हालांकि ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जब किसी शिक्षक के स्कूल से जाने पर छात्र रोने लगे और उनके वीडियो सामने आए. ऐसी भावना तभी आती है जब शिक्षक अपने से बढ़ कर अपने स्टूडेंट्स को प्यार करता है, उन्हें बताता है कि सीखने का क्या महत्व है और शिक्षा कैसे आगे जाकर उनकी ज़िंदगी में काम आएगी.

पढ़ने की आदत डालना और किताबों को आपस में शेयर करना बहुत ज़रूरी होते हैं. मुझे लगता है कि लाइब्रेरी एक बहुत ही अहम साधन होता है जिसपर ध्यान दिया जाना चाहिए. अगर बच्चे और शिक्षक पढ़ेंगे तभी उन्हें समझ आएगा कि शिक्षा का असल अर्थ क्या है. साक्षरता शिक्षा नहीं होती. आज अगर हम बच्चों को कोई जानकारी देते हैं तो वह जानकारी तो विकिपीडिया पर भी उपलब्ध है. शिक्षक की भूमिका यही है कि वह अच्छी चीज़ों को पहचाने और शिक्षा के ज़रिए समाज में परिवर्तन का साझीदार बने.

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परिचय: डॉ. सुधी राजीव जयपुर स्थित हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति (एक्स वाइस चांसलर) हैं. वह जोधपुर स्थित जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में कला, शिक्षण और सामाजिक विज्ञान संकाय की डीन तथा इस यूनिवर्सिटी के अंग्रेज़ी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा विभागाध्यक्ष रह चुकी हैं. वह जे एन व्यास यूनिवर्सिटी में महिला अध्ययन केंद्र की संस्थापक निदेशक रही हैं. वह इंग्लिश के कौशल विकास के लिए राजस्थान स्टेट नॉलेज कमीशन की सदस्य तथा राजस्थान राज्य उच्चतर शिक्षा परिषद की भी सदस्य रह चुकी हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

(अपूर्व कृष्ण के साथ बातचीत पर आधारित लेख)

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