विज्ञापन
This Article is From Dec 24, 2023

Tonk Foundation Day: जानें टोंक से जुड़ी ऐतिहासिक तथ्य और कहानियां

ख्वाजा रामसिंह ने 24 दिसम्बर 946 ईस्वी में टुकड़ा को बसाया था, बाद में जिसकी पहचान टोंक के नाम से हुई.  पार्टिशन के बाद टोंक छोड़कर पाकिस्तान जाने वाले लेखक इबादुर्रहमान को अपने घर से ज्यादा वो नीम के पेड़ की याद आती है, जिसे वो आंगन में सर झुकाए अकेला छोड़ आये थे. वे कहते हैं कि, मकान तो मुझे यहां मिल गया, लेकिन सरकार वो नीम कहां से लायेगी.'

Tonk Foundation Day: जानें टोंक से जुड़ी ऐतिहासिक तथ्य और कहानियां
1990 से आयोजित हो रहा है टोंक स्थापना महोत्सव

Rajasthan News: राजस्थान का टोंक आज अपना स्थापना दिवस मना रहा है. 1990 से निरन्तर टोंक के प्राचीन गढ़ में स्थापना दिवस पर पूजा अर्चना का सिलसिला रविवार को भी जारी रहा. जहां टोंक के प्रबुद्ध नागरिकों ने गढ़ परिवार के सदस्यों के साथ गढ़ की माताजी के मंदिर में पूजा अर्चना के साथ 24 दिसम्बर 946 ईस्वी में हुई ‘टूकड़ा' की स्थापना के इस स्थापना दिवस पर समारोह पूर्वक कार्यक्रम के साथ इस सिलसिले को जारी रखा.

टोंक स्थापना दिवस पर 1990 में समाज सेवी ओर "टोंक का इतिहास" पुस्तक के लेखक हनुमान सिंघल ने टोंक महोत्सव समिति के माध्यम से टोंक महोत्सव मनाने की शुरुआत की थी, जो हर साल एक समारोह के रूप मे मनाया जाता रहा है. इस साल भी रविवार के दिन मंदिर में पूजा अर्चना के बाद टोंक के इतिहास पर चर्चा हुई.

पाकिस्तान जाकर भी न भूल पाएं टोंक की नीम

इसी तरह पार्टिशन के बाद टोंक छोड़ कर कराची जाने वाले इबादुर्रहमान अपनी किताब में लिखते हैं कि उनको टोंक में अपने घर से ज्यादा वो नीम याद आता है, जिसको आंगन में सर झुकाए अकेला छोड़ आये थे. कहते हैं कि, मकान तो मुझे यहां मिल गया, लेकिन सरकार नीम कहां से लायेगी, जिसकी छांव में नींद की परियां झूला झूलती थी. जिसके नीचे एक बच्चे ने निंबोलियों की दुकान लगाई थी. जहां बहने गुड्डा- गुड़ियां खेली, शादी की शहनाई बजी, बाप का जनाजा रखा गया, फिर उसी बूढे नीम की सींक उदास मां ने कानों में पहन ली.

Latest and Breaking News on NDTV

नज्मों में पूछा करते टोंक का हाल

24 दिसंबर 946 इस्वी को इस शहर की बुनियाद रखने वाले हाकिम रामसिंह ने सोचा भी नही होगा कि अपनी तहजीब, माहौल, सभ्यता और अपनी अनूठी मिली जुली संस्कृति से पूरी दुनिया में टोंक अपनी अलग सी पहचान बना लेगा, टोंक के लोगों की मासूमियत उनका दिलकश अंदाज कहीं नही मिलेगा. टोंक के लोग दुनिया में कहीं भी चले गए हो लेकिन टोंक को नही भूल सके. टोंक के मशहूर रोमांसवादी शाइर अख्तर शिरानी का पूरा काव्य संग्रह अपनी प्रेयसी सलमा के इश्क को समर्पित है, तब भी वे टोंक से अपनी मोहब्बत को नही भूले. पाकिस्तान में बैठकर वे टोंक के पनघट को याद करते हैं. टोंक की पगडंडियों को याद करते हैं और बार बार अपनी नज्मों में पूछ बैठते हैं कि, किस हाल में है मेरा याराने वतन...

लोगों के दिलों से अबतक जुड़ा है बनास का पानी

हकीकत में, टोंक के लोगों के लिए फ़ख़्र की बात है कि वो बनास के समीप बसे उस अजीम तरीन शहर के नागरिक हैं, जिस बनास में कभी बेलों के गजरे, लू में पके हुए खरबूजे, खस की पांखियां, नमीं, सौंधे छिड़काव से हवाए दीवानी हो जाती और रात चांद का झूमर उतार देती थी. बनास का यह जादू अब बेशक नही रह गया हो पर लोगों के दिलों से इसका पानी अब तक जुदा नही हुआ, इस शहर की जाने कितनी कहानियां हैं, जाने कितने किस्से हैं, जाने कितने फसाने हैं लेकिन हर एक किस्सा हर एक अफसाना टोंक के लोगों की भरपूर मोहब्बत से महक रहा है.

1990 से आयोजित हो रहा है टोंक स्थापना महोत्सव

टोंक स्थापना समिति के अध्यक्ष सुजीत कुमार सिंहल कहते है कि टोंक स्थापना दिवस पर टोंक महोत्सव की शुरुआत लेखक इतिहासकार हनुमान सिंहल साहब ने 1990 में की थी. उसी समय हनुमान सिंहल ने टोंक का इतिहास लिखा था और वो चाहते थे, लोगों को अपने इतिहास की तथ्यात्मक जानकारी हो. सिंहल साहब ने अपनी किताब में तफसील और सटीक तथ्यों के साथ हर घटना का उल्लेख किया. इसके बाद उन्होंने ही टोंक महोत्सव के आयोजन के जरिए टोंक के लोगों को अपनी संस्कृति खेल कला इतिहास की जानकारी देने का निश्चय किया जो अब तक जारी है.

Latest and Breaking News on NDTV

टूकड़ा की आधारशिला

इतिहास में दर्ज प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर संवत् 1003 तदनुसार 946 ईस्वी में दिल्ली के तंवर राजा तुंगपाल के काका (चाचा) क्षेत्रपाल अपने भतीजे से नाराज होकर टोंक चले आए और यहीं पर रहने लगे. कुछ समय बाद राजा तुंगपाल ने ढूंढाड़ क्षेत्र के प्रबंध के लिए अपने विश्वस्त सरदार ख्वाजा रामसिंह को भेजा. देवयोग से ख्वाजा रामसिंह का पड़ाव इस क्षेत्र में लम्बे समय तक रहा. इसी बीच ख्वाजा रामसिंह ने बड़ी कुशलता से चाचा- भतीजे में सुलह भी करवा दी. प्रसन्न होकर क्षेत्रपाल फिर दिल्ली चले गए. यहीं पर ख्वाजा रामसिंह ने 24 दिसम्बर को 946 को ‘टूकड़ा' की आधारशिला रखी, जो कालान्तर में टोंक के नाम से मशहूर हुआ.

क्षेत्रपाल ने बनवाई ख्वाजा की बावड़ी

तंवर क्षेत्रपाल ने अपने रहने के लिए यहां पर कई महल बनवाए, जिनके अवशेष आज भी तमोलियों के मोहल्ले में मौजूद है. बमोर दरवाजे पर ख्वाजा की बावड़ी बनवाई. भारत के अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में यह टूकड़ा पीपलू परगने के अन्तर्गत आता था. इसे अपने सेनापति चामुण्डा राय को जागीर में दे दिया, जिन्होंने अपने बेटे सोनपाल के नाम पर ‘सोनवा' नामक ग्राम बसाया. ये ग्राम आज भी टोंक शहर के दक्षिण में 4 मील की दूरी पर बसा हुआ है.

Latest and Breaking News on NDTV

टोंक की स्थापना के बारे में विद्वानों की राय

टोंक के इतिहास के बारे में कवि श्यामल दास ने अपनी पुस्तक वीर विनोद में लिखा है कि शहर टोंक एक नीची पहाड़ी के पास बसा हुआ है, जिस के बारे में कहा जाता है कि संवत 1003 विक्रमी में माघ कृष्णा 13, 27 जमादुल अव्वल 335 हिजरी, दिसंबर 945 ई. दिल्ली के राजा खनवाद के एक हाकिम रामसिंह ने एक गांव बसा कर इसका नाम टोंक रखा था. इस आबादी को अब टोंक कहते हैं. संवत् 1863 विक्रमी 1221 हिजरी 1806 ई. में टोंक पर अमीर खां का अधिकार हुआ. 

इस संबंध में बाबा उर्दू मौलवी अब्दुल हक साहब ने अपनी पुस्तक जायजा जबाने उर्दू में लिखा है कि सन् 946 का वाकिया है कि मट्टनपाल राज देहली से ख्वाजा रामसिंह नाराज होकर राजपूताने में चले आएं, उसने इस कोईन्वे के नीचे जिसे रसिया की टेकरी कहते हैं एक कस्बा बसाया, जो टोंक के नाम से मशहूर है. बाबू जवाला सहाय भरतपुरी अपनी पुस्तक से बातारीख 13 माघ माह संवत 1003 का गांव आबाद करके इसका नाम टूंकड़ा रखा था. ये आबादी अब टोंक के नाम से मशहूर है. उल्लेखनीय है कि पुरानी टोंक में पुरासंपदा का खजाना बिखरा पड़ा है. लेकिन उसपर कभी कोई गंभीरता से शोध नहीं होने एवं पुरातत्व विभाग द्वारा पूरी तरह ध्यान नहीं दिए जाने के कारण कई अवशेष नष्ट हो गए तो कई नष्ट होने के कगार पर है.

ये भी पढ़ें- बदहाली के आंसू रो रहा ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर, 750 सालों तक जैसलमेर की बुझाई प्यास  

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Previous Article
राजस्थान के कृष्ण कुमार ने बढ़ाया देश का मान, वर्ल्ड स्ट्रेंथ लिफ्टिंग चैंपियनशिप में जीता गोल्ड
Tonk Foundation Day: जानें टोंक से जुड़ी ऐतिहासिक तथ्य और कहानियां
The population of black bucks is increasing in Churu's Tal Chhapar Sanctuary, tourists are reaching the blackbuck sanctuary
Next Article
चूरू की ताल छापर सेंचुरी में बढ़ रहा है काले हिरणों का कुनबा, कृष्णमृग अभयारण्य में पहुंच रहे हैं सैलानी
Close