
Supreme court upholds conviction: सुप्रीम कोर्ट ने करीब 37 साल पुराने प्रकरण में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया. रेप केस के आरोपी की सजा बरकरार रखते हुए उसे जेल की बजाय बाल सुधार गृह भेज दिया गया. कल (23 जुलाई) 1988 में नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी, लेकिन अपराध के दिन उसे किशोर पाते हुए उसकी जेल की सजा रद्द कर दी. क्योंकि 17 नवंबर, 1988 यानी वारदात के दिन आरोपी की उम्र 16 वर्ष 2 महीने और तीन दिन थी. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, "आरोपी द्वारा अपराध के समय किशोर होने का दावा करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को उसके दावों की जाँच करने का निर्देश दिया. अपीलकर्ता अपराध के दिन किशोर था."
किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधान होंगे लागू
पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय के आधिकारिक निर्णयों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नाबालिग होने की दलील किसी भी अदालत में उठाई जा सकती है और मामले के निपटारे के बाद भी किसी भी स्तर पर इसे मान्यता दी जानी चाहिए. साथ ही दोषी पर किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 के प्रावधान उस पर लागू होने की बात कही.
पीठ ने कहा, "परिणामस्वरूप, निचली अदालत द्वारा दी गई और उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखी गई सज़ा को रद्द करना होगा, क्योंकि वह टिक नहीं सकती. हम तदनुसार आदेश देते हैं." 2000 अधिनियम की धारा 15 और 16 के आलोक में उचित आदेश पारित करने के लिए मामले को बोर्ड को भेजते हुए, पीठ ने अभियुक्त को 15 सितंबर को बोर्ड के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया.
कोर्ट ने सुनाई थी 5 साल की जेल
शीर्ष अदालत का यह फैसला राजस्थान उच्च न्यायालय के जुलाई 2024 के फैसले के खिलाफ आरोपी की अपील पर आया उच्च न्यायालय ने मामले में निचली अदालत द्वारा दी गई दोषसिद्धि और 5 साल की सजा की पुष्टि की थी. शीर्ष अदालत में उसके वकील ने अभियोजन पक्ष के मामले में कथित विसंगतियों पर प्रकाश डाला और कहा कि अपराध के समय आरोपी किशोर था.
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