IAS Tina Dabi: वर्ष 2015 की UPSC टॉपर टीना डाबी एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इसकी वजह एक किताब है, जिसे पाकिस्तान के एक विस्थापित हिन्दू ने लिखा है. इस किताब के कवर पर टीना डाबी की तस्वीर है. "पुनर्वासी भील" नाम की इस किताब के लेखक किशनराज भील ने ये किताब पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए 88 हिन्दुओं के संघर्ष और उनकी पीड़ा को दर्ज करवाने के लिए लिखी है. उनके संघर्ष में टीना डाबी की एक बड़ी भूमिका रही क्योंकि वो जैसलमेर की ज़िलाधिकारी रह चुकी हैं. लेखक कहते हैं कि टीना डाबी की ही पहल और सक्रियता से पाकिस्तान से आए इन हिन्दुओं को सहारा मिल सका. महज हाई स्कूल तक पढ़े हुए किशनराज भील जैसलमेर की पूर्व कलेक्टर टीना डाबी के पुनर्वास के काम से इतने प्रभावित हुआ कि उन्होंने एक किताब लिख डाली जिसमें उन्होंने टीना डाबी के बारे में एक अध्याय लिखा है और उनकी तस्वीर कवर पर लगाई है.
2015 में पाकिस्तान के 88 हिंदू धार्मिक वीजा पर जैसलमेर आए थे
वर्ष 2015 जून में पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर आए और अक्टूबर तक रहे. पाकिस्तान के एक ही परिवार के 88 हिन्दू विस्थापित धार्मिक वीजा पर जैसलमेर आए थे. लेकिन जैसलमेर उनके लिए परदेस था. किताब के लेखक किशन इन 88 लोगों वाले परिवार के रिश्तेदार थे और उनके घर पर कुछ दिन रहने के बाद वो उन्होंने किशनघाट में अपनी बस्ती बसा ली. लेकिन 4 महीने बाद उनका असल संघर्ष अक्टूबर 2015 में शुरू हुआ, जब उन्हें 24 घंटे में जगह खाली करने को कहा गया. अन्यथा सरकार वापस उन्हें पाकिस्तान भेजेंगा. यह अल्टीमेटम दिया गया. इस किताब की कहानी यहीं से शुरू होती है.
टीना डाबी ने पाकिस्तान के हिन्दू विस्थापितों के लिए क्या किया
लेकिन संघर्ष के बाद शंखनाद में राहत की कहानी इस किताब के चौथे अध्याय एकलव्य भील बस्ती जैसलमेर की है. दरअसल, जैसलमेर शहर से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर अमरसागर गांव के तालाब के कैचमेन्ट एरिया में जिस जगह वो बसे थे, उसे सरकार अवैध कब्जा मानती थी. पिछला साल बहुत भारी बीता जब प्रशासन ने अतिक्रमण मानते हुए इन पाकिस्तानी हिन्दुओं को बेदखल कर दिया. तब जैसलमेर की जिला कलक्टर टीना डाबी थीं और प्रशासन के फैसले की काफी आलोचना हुई थी.
मगर टीना डाबी ने कानून के पालन के साथ-साथ मानवीयता को भी उतना ही महत्व दिया. उन्होंने पाक विस्थापितों के लिए करीब 7 किलोमीटर दूर मूलसागर में 40 बीघा जमीन अलॉट करवाया. उन्होंने ना केवल उन्हें रहने की जगह दिलवाई, बल्कि उनके खाने-पीने के भी इंतजाम करवाए थे. देश का संभवतः यह पहला मामला था जिसमें हिन्दू पाकिस्तानी विस्थापितों को बकायदा राज्य सरकार के सहयोग से जिला प्रशासन की ओर से पुनर्वास किया गया. इसी फैसले के कारण टीना डाबी ने इन विस्थापितो के दिलों में जगह बनाई.
किशनराज भील
विस्थापितों ने टीना डाबी को दुआएं दीं
एक बार उजड़ने के बाद जब इन परिवारों को फिर बसने के लिए जमीन अलॉट हुई दी तो पाक विस्थापित परिवारों ने तत्कालीन जिला कलेक्टर टीना डाबी के लिए खूब दुआएं दी थीं. जब यह सारा घटनाक्रम हुआ उस वक्त टीना डाबी प्रेग्नेंट थीं. तब एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था. इसके बाद जब उन्होंने बेटे को जन्म दिया तो पुनर्वास के वक्त के काफी फोटो वायरल हुए थे.
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"पुनर्वासी भील- एकलव्य भील बस्ती व 88 पुनर्वासी भीलों का इतिहास" किताब में पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर आदि जगहों पर पाकिस्तान से आए हिंदुओं के संघर्षों की कहानी को बयां किया गया है.
'टीना डाबी से संपर्क नहीं हो सका'
किशनराज भील कहते हैं,"हमें जो राहत मिली वो तत्कालीन कलक्टर टीना डाबी की बदौलत ही मिली. टीना डाबी के काम करने के तरीके व गरीब के दर्द को समझने के कारण ही हमें यह बस्ती अलॉट हो सकी है." मगर क्या उन्होंने अपनी किताब टीना डाबी को भेजी है? वो कहते हैं,"मैंने सोचा था कि इस किताब का विमोचन उन्हीं से करवाउंगा.उनसे सम्पर्क के प्रयास भी किए लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया."
मैडम कोई एक्शन लेगी तो भी मंजूरः किशनराज भील
किशनराज भील पूछने पर ये भी कहते हैं कि कि उन्होंने किताब के कवर पर टीना डाबी की फोटो भी बिना उनकी अनुमति के लगाई है. वो कहते हैं,"हमने प्रयास किए थे लेकिन सम्पर्क नहीं हो पाया.लेकिन उनका धन्यवाद देने के लिए ही मैंने सम्पर्क नहीं होने पर भी उनका फोटो इस पुस्तक के कवर में लगाया.अगर कलेक्टर मैडम बिना परमिशन फोटो छापने के लिए कोई एक्शन लेती हैं तो वो मुझे स्वीकार है."
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