
Rajasthan News: जोधपुर में स्थित गीता भवन में आज भी 190 वर्ष पुरानी स्वर्ण अक्षरों में हस्तलिखित भगवत गीता को सुरक्षित रखा गया है. ये भक्तों के लिए साल में सिर्फ गीता जयंती के दिन ही भक्तों के दर्शन के लिए बाहर आती है. इसका इसी दिन विशेष पूजन भी किया जाता है. 1889 संवत के समय की गीता को आज भी बड़े सुरक्षित ढंग से संरक्षित भी किया गया है.
चमक आज भी है बरकरार
गीता प्रचार मंडल के महामंत्री राजेश लोढ़ा ने बताया कि गीता जयंती के अवसर पर 190 साल पुरानी स्वर्ण अक्षरों में हस्तलिखित गीता की विशेष पूजा की जाती है. यह गीता आज भी बहुत सुरक्षित स्थिति में है और वर्ष में एक ही दिन गीता जयंती के अवसर पर इसकी पूजा की जाती है और इसको वापस अंदर रख दिया जाता है. भक्त भी वर्ष में एक बार ही इसके दर्शन कर सकते हैं. संवत 1889 में पंडित नारायण दास व पंडित मदनदास के द्वारा यह हस्तलिखित गीता लिखी गई है. जिसका इस गीता की आखिरी पन्नों में भी उल्लेख है. अगर इसके इतिहास की बात करें तो इसकी विशेषता यह है कि यह हस्तलिखित है स्वर्ण अक्षरों में लिखित है और इसकी चमक भी वही है जो 190 वर्ष पहले थी.
1951 में बना था गीता भवन
जोधपुर का ऐतिहासिक गीता भवन वर्ष 1951 में बना था. गीता प्रचार मंडल के महामंत्री राजेश लोढा बताते हैं कि इस मंदिर की शुरुआत में सबसे पहले यहां पर भगवान महादेव का शिवलिंग स्थापित किया गया था. उसके बाद वर्ष 1969 में चक्रधारी भगवान श्री कृष्णा का मंदिर भी स्थापित हुआ और धीरे-धीरे मंदिर ने भी विराट रूप लिया. आज अगर वर्तमान की बात करें तो राम दरबार और हनुमान मंदिर के साथ ही मां दुर्गा का मंदिर भी है और शहरवासी भी यहां सुबह टहलने के लिए भी आते हैं. वहीं मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने ही गोवर्धन पर्वत के भी दर्शन होते हैं. ऑफिस ग्रुप से जन्माष्टमी के अवसर पर भी हजारों की संख्या में भक्त यहां दर्शन करने आते हैं और गीता जयंती के अवसर पर भी स्वर्ण हस्त लिखित गीता के दर्शन करने भी लोगों का हुजूम उमड़ता है.
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