Kotputli News: कोटपूतली बहरोड़ ज़िले के गांव कीरतपुरा की ढाणी बड़ियाली में 700 फीट गहरे खुले बोरवेल में गिरी तीन साल की बच्ची चेतना को बुधवार शाम को 10 दिनों के लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद 160 फीट की गहराई से बाहर निकाला गया. पाइलिंग मशीन से बोरवेल के समानांतर 170 फीट गहरा गड्ढा खोदने के बाद NDRF के जवान महावीर ने शाम 6:25 बजे सफेद कपड़े में लिपटी चेतना को बाहर निकाला गया. उसे तुरंत एंबुलेंस से नज़दीकी सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद चेतना को मृत घोषित कर दिया. देर शाम पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया. जैसे ही शव पिता भूपेंद्र चौधरी को सौंपा गया, वो फूट-फूटकर रो पड़े. गमगीन माहौल में चेतना के पिता और दादा बच्ची का शव घर लेकर गए जिसके बाद घर में सारे लोग रो पड़े.
मिट्टी में धंसी थी चेतना
10 दिन तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर कई तरह के सवाल उठे. प्रशासन ने चेतना को बाहर निकलने के लिए तकनीकों का इस्तेमाल किया, लेकिन कुछ भी कामयाब नहीं हुआ. बाद में पाइलिंग मशीनों से बोरवेल के पास एक 170 फ़ीट का गड्डा खोदा गया, और सुरंग बना कर चेतना तक पहुंचा गया.
चेतना को बोरवेल से NDRF जवान महावीर जाट गोद में लेकर बाहर आए. उन्होंने मीडिया को बताया कि चेतना जिस जगह फंसी थी वहां बोरवेल मुड़ा हुआ था, इसी वजह से वो वहीं अटक गई. उन्होंने बताया,"चेतना जिस जगह फंसी थी वहां बोरवेल मुड़ा हुआ था जिससे वो वहीं अटक गई थी. इसी वजह से जब पहले उसे हुक से खींचने की कोशिश की तो स्वेटर कमज़ोर होने से वह फट गया और हुक निकल गया."
"वहीं गीली मिट्टी, कंकड़ में उसके कपड़े फंसे हुए थे. धीरे-धीरे अपनी उंगली से हम मिट्टी हटाते गए और बिटिया को लेकर आए. वह पत्थरों और मिट्टी में फंसी हुई थी, हम धीरे-धीरे पत्थरों को काटते गए और आगे बढ़ते गए."
महावीर जाट ने बताया कि उन्होंने बच्ची को जब उठाया तो उसका शरीर ठीक स्थिति में था. उन्होंने कहा,"चेतना की बॉडी पर कोई निशान नहीं था, इतने दिन होने के बाद भी उसकी बॉडी बिल्कुल ठीक थी."
महावीर ने बताया कि सुरंग बनाना काफी मुश्किल था. अंदर से उन पर मिट्टी और पत्थर गिर रहे थे. मिट्टी में चेतना को ढूंढना भी एक मुश्किल काम था.
क्या बोले डॉक्टर?
BDM अस्पताल में जब चेतना को ले जाया गया तो उसकी सांसे टूट चुकी थीं. डॉक्टरों को कहना है कि जब चेतना को लाया गया उससे पहले ही उसकी मृत्यु हो गई थी. देर रात शव का पोस्टमार्टम किया गया, लेकिन चेतना की मौत कब हुई इसका कोई जवाब डॉक्टर देना नहीं चाहते, हर कोई मामले पर चुप है.
रेस्क्यू ऑपरेशन में कई तकनीकी ख़ामियां
रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं पहले दिन जब रेस्क्यू टीम ने काम शुरू किया था, तब बचाव कर्मियों ने मीडिया के सामने दावा किया था कि वे रात तक बच्ची को बोरवेल से बाहर निकाल लेंगे. लेकिन इस पूरे ऑपरेशन में प्रशासन ने तकनीकी खामियों को नजरअंदाज किया और पर्याप्त साधन जुटाने में भी नाकामयाब रहे. प्लान बी के तहत पाइलिंग मशीनों से खुदाई शुरू करने का निर्णय लेने में देरी हुई.
जबकि, इससे पहले ही चेतना का मूवमेंट दिखना बंद हो गया. सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि हाल ही में दौसा में हुए आर्यन मामले से टीम ने शायद कोई बड़ा सबक नहीं लिया. उस घटना में आर्यन को भी जीवित नहीं बचाया जा सका था.
चेतना रेस्क्यू ऑपरेशन की पूरी टाइम लाइन
24 दिसंबर की सुबह 5:30 बजे से प्रशासन फिर सक्रिय हुआ. अधिकारियों ने परिजनों से चेतना को हुक में फंसा कर बाहर निकालने की परमिशन ली. 9:30 बजे तक बच्ची को 15 फीट ऊपर खींचा गया. लेकिन उसमें वह अफसल रहे जिसके बाद प्रशासन ने हरियाणा के गुरुग्राम से पाइलिंग मशीन मंगवाई.
25 दिसंबर को मशीन के आने के बाद पैरलल खड्डा खोदने का काम शुरू हुआ जिससे दोपहर 40 फीट ही सुरग खोदने के पाइलिंग मशीन बंद की गई. उसके बाद 5:30 बजे रेस्क्यू अभियान एक बार फिर से शुरू किया गया. शाम छह बजे 200 फीट क्षमता की एक और पाइलिंग मशीन मौके पर पहुंची. इसे चलाने के लिए गुजरात से एक और टीम भी आई.आठ बजे रेट माइनर की टीम पहुंची. मामले को तूल पकड़ता देख देर रात 11 बजे कोटपूतली-बहरोड़ कलेक्टर कल्पना अग्रवाल घटनास्थल पर पहुंची.
26 दिसंबर: सुबह 10 बजे पत्थर आने के कारण पाइलिंग मशीन को रोका गया. छह घंटे में मशीन से पत्थर को काटा गया. शाम करीब छह बजे गड्ढे की गहराई चेक की गई, इसके बाद पाइलिंग मशीन को हटाया गया. 6:30 बजे से क्रेन से गड्ढे में सेफ्टी पाइप लगाना शुरू किए गए.
27 दिसंबर की दोपहर करीब 12 बजे तक 170 फीट गहरे खोदे गए गड्ढे में लोहे के पाइप फिट किए गए. 12:40 बजे इन पाइप का वजन उठाने के लिए 100 टन क्षमता की मशीन मौके पर बुलाई गई. करीब एक बजे मौसम बदलने के कारण हुई बारिश से पाइप वेल्डिंग का काम रुक गया. शाम पांच बजे वेल्डिंग का काम दोबारा शुरू किया गया, जो देर रात तक चलता रहा.
28 दिसंबर को एनडीआरएफ के 6 जवानों की टीम बनाई गई. सुरंग खोदने के लिए दो-दो जवानों को 170 फीट गहरे गड्ढे में उतारा गया. इन जवानों ने चार फीट की सुरंग खोदी.
29 दिसंबर को भी सुरंग की खुदाई जारी रही. रास्ते में आने वाले पत्थरों को तोड़ने के लिए कंप्रेशर मशीन बुलाई गई. पत्थरों को काटने की तकनीक समझने के लिए माइनिंग एक्सपर्ट को बुलाया गया.
30 दिसंबर को प्रशासन और एनडीआरएफ के अफसरों ने दावा किया कि वे चेतना को आज (सोमवार) बाहर निकाल लेंगे. लेकिन, पत्थरों और अन्य कारणों से इसमें फिर देरी हो गई. सुरंग खोद रहे जवानों को अंदर सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी.
31 दिसंबर को पता चला कि जो सुरंग खोदी गई थी, वह गलत दिशा में थी. जिससे बोरवेल की स्पष्ट स्थिति समझ में नहीं आ रही थी.
1 जनवरी पाइलिंग मशीन से बोरवेल के समानांतर 170 फीट गहरा गड्ढा खोदने के बाद NDRF के जवान महावीर ने शाम 6:25 बजे सफेद कपड़े में लिपटी चेतना को बाहर निकाला।
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