Atul Subhash Suicide Case: बेंगलुरु में काम करने वाले बिहार के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद दहेज उत्पीड़न कानून सवालों के घेरे में है. बहुत सारे लोग दहेज उत्पीड़न के साथ-साथ पत्नियों द्वारा दर्ज कराए जाने वाले घरेलू हिंसा के मामलों पर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं. अतुल ने आत्महत्या से पहले 90 मिनट का वीडियो बनाया था. साथ ही 24 पन्नों का सुसाइड नोट भी लिखा था. अब यह वीडियो और सुसाइड नोट सोशल मीडिया पर वायरल है. जिसे लेकर दहेज उत्पीड़न कानून को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
अतुल के सुसाइड से पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में
इसके साथ-साथ सुभाष ने कोर्ट-कचहरी के जिस चक्कर का जिक्र किया है, उससे पूरा सिस्टम ही सवालों के घेरे में आ गया है. अतुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले जो वीडियो बनाया और सुसाइड नोट लिखा उसमें अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया पर उन्हें दहेज और अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के ‘झूठे' मामलों में फंसाने का आरोप लगाया.
अतुल के मामले से दहेज उत्पीड़न कानून को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है. हालांकि, इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी कई बार टिप्पणी की जा चुकी है कि इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है. इसकी वजह से कई मासूम भी इसकी जद में आकर सजा काट रहे हैं.
पत्नी ने अतुल और उसके परिवार पर कराए थे 9 केस
अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया ने तो पति अतुल सुभाष और उनके परिवार के खिलाफ 9 केस दर्ज कराए थे. जिसमें से कई केस तो उसने वापस ले लिया. लेकिन, अदालतों के चक्कर काटकर हार चुके अतुल सुभाष को अंततः इससे निकलने का सही रास्ता मौत ही नजर आया. जो किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता.
अतुल ने लिखा- न्याय अभी बाकी है
अतुल ने आत्महत्या से पहले लिखा भी है कि न्याय अभी बाकी है. सिस्टम का झोल देखिए दहेज वाले मामले में अतुल बेंगलुरु से, उनका छोटा भाई दिल्ली से और उनके मां-बाप बिहार से लगभग 120 बार जौनपुर कोर्ट में पेश हुए. अब जब अतुल सुभाष नहीं रहा तो उसकी मौत के बाद चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है, जिसमें उसकी पत्नी निकिता सिंघानिया, उनकी मां निशा सिंघानिया, भाई अनुराग सिंघानिया और चाचा सुशील सिंघानिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.
#NDTVMuqabla | अतुल सुभाष की खुदकुशी ने नई बहस को दिया है जन्म
— NDTV India (@ndtvindia) December 11, 2024
पूरा वीडियो : https://t.co/JkzrJq21Qr#AtulSubhash | @maryashakil pic.twitter.com/ai4tdagohr
दहेज उत्पीड़न से पुरुषों को फंसाया जा रहा है
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने कहा, ''दहेज उत्पीड़न कानून जो पहले आईपीसी 498ए था. अब बीएनएस की धारा 85 और 86 में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार या उत्पीड़न के खिलाफ है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के तमाम जो फैसले आए, उसमें यह कहा गया कि महिलाएं इस कानून का दुरुपयोग कर रही हैं. इस मामले में पति और पति के सारे रिश्तेदारों को भी फंसाया जा रहा है.
मुकदमा दर्ज होने से पहले होनी चाहिए जांच
जिसकी वजह से झूठे मुकदमों का उनको सामना करना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में टिप्पणी की थी कि जहां शादीशुदा जोड़ा रहता है, वहां अगर परिवार के अन्य सदस्य रहते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा दायर होने से पहले जांच होगी. अगर मुकदमा दायर भी हो गया तो गिरफ्तारी से पहले इसको लेकर संबद्ध संस्थाओं से मंजूरी लेनी पड़ेगी.''
दहेज उत्पीड़न कानून में बदलाव की जरूरत
अश्विनी दुबे ने आगे कहा, ''अदालत भी अब मान रही है कि जो कानून महिलाओं की रक्षा के लिए बना था, उसका अब ज्यादातर इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा रहा है. ऐसे में यह कानूनी रूप से ही सही नहीं है बल्कि इसकी वजह से परिवारों का विघटन भी हो रहा है. अब इस कानून में बदलाव की जरूरत है.
महिला ही नहीं पुरुष भी हो रहे प्रताड़ित
अश्विनी दुबे ने आगे कहा कि अगर लिंग तटस्थ कानून (जेंडर न्यूट्रल लॉ) बनता है तो इससे यह फायदा होगा कि इसमें यह साफ हो पाएगा कि हर जगह केवल महिला ही उत्पीड़न की शिकार नहीं हो रही हैं, बल्कि पुरुष भी इसका शिकार हो रहे हैं. अगर जेंडर न्यूट्रल लॉ इसको लेकर बनाएंगे तो समानता का जो अधिकार है, उसका सही से पालन होगा. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के साथ ही कानून बनाने वालों को भी आगे आना चाहिए ताकि सबके लिए न्याय सुनिश्चित हो सके.''
कानून का धड़ल्ले से हो रहा दुरुपयोग
सुप्रीम कोर्ट के वकील मधु मुकुल त्रिपाठी ने इस पूरी घटना और दहेज उत्पीड़न कानून को लेकर कहा, ''इस देश में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि बहुत सारे कानून ऐसे हैं, जिसका धड़ल्ले से दुरुपयोग किया जा रहा है. इससे भारतीय न्याय व्यवस्था भी अच्छी तरह से परिचित है. लेकिन, समझ नहीं आता कि वह ऐसे मामलों में एक पक्षीय क्यों हो जाता है?
कानून का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ हो सजा
मधु मुकुल त्रिपाठी ने आगे कहा कि मेरा भी स्वयं का मानना है कि कई बार न्यायाधीश ऐसे मामलों में एक पक्षीय हो जाते हैं. खासकर तब जब बात महिला उत्पीड़न की आती है. ऐसी चीजों से उनको बचना चाहिए. ऐसे में न्यायाधीशों को चाहिए कि इस तरह के कानून के दुरुपयोग को रोकें. जबकि, इसी दहेज उत्पीड़न कानून का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ सजा का कोई प्रावधान नहीं है, ऐसा क्यों है?''
यह भी पढ़ें - उसने अपना फ्रस्टेशन निकाला, मौत का अफसोस लेकिन हम जिम्मेदार नहीं: अतुल सुभाष की सास