Rajasthan High Court: जयपुर में 34 साल पहले 13 साल की सौतेली बेटी से रेप करने का आरोप लगा था. राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपों से सौतेले पिता को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. कोर्ट ने इस मामले में पुलिस की खामियों पर सवाल उठाया. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक से अनुसंधान अधिकारी की कार्यशैली पर जांच कराने के लिए कहा. साथ ही खामियों को अनदेखा करने पर अधीनस्थ अदालत की कार्यप्रणाली पर हैरानी जताई है.
सौतेले पिता की अपील पर कोर्ट ने दिया आदेश
न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने इस मामले में सौतेले पिता की अपील को मंजूर कर यह आदेश दिया. अपीलार्थी पक्ष की ओर से अधिवक्त सुधीर जैन ने कोर्ट को बताया कि उसके खिलाफ 1990 में जयपुर में FIR दर्ज हुई, जिसमें 13 साल की किशोरी ने अपने सौतेले पिता पर रेप करने का आरोप लगाया था. अधीनस्थ न्यायालय ने 32 साल पहले सात साल की सजा सुनाई.
अपील में कहा-दो साल पहले दर्ज कराई गई FIR
इसके खिलाफ अपली में कहा गया कि FIR घटना दो साल बाद दर्ज कराई गई. पुलिस ने एक सप्ताह से अधिक समय तक एफआईआर दर्ज नहीं की. परिवादियों पक्षद्रोही हो गई, बयानों में विरोधाभास है. लोक अभियोजक इमरान खान ने कहा कि 13 साल की बालिका के झूठे आरोप लगाने की कोई वजह नहीं हो सकती है. इसके अलावा मां के पक्षद्रोही होने के बावजूद पीड़िता अपीलार्थी के खिलाफ खड़ी रही. इसमें मामले में मौका नक्शा की आवश्यकता नहीं थी. एफआइआर से पहले पीड़िता के बयान लेने के कारण इसे दर्ज करने में देरी हुई.
कोर्ट ने जताई हैरानी
कोर्ट ने कहा कि हैरानी की बात है दो-तीन जगह बलात्कार होने के बावजूद पुलिस ने मौका नक्शा तैयार नहीं किया. इस मामले में अनुसंधान अधिकारी ने अपनी शक्तियों का सही इस्तेमाल नहीं किया, वहीं अधीनस्थ अदालत ने भी पुलिस की कमियों की ओर ध्यान नहीं दिया. कोर्ट ने अपील मंजूर करते हुए अपीलार्थी को निर्देश दिया कि वह एक लाख रुपए के मुचलके व 50 हजार रुपए की दो जमानत एक माह में पेश करे.
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