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Lok Sabha Election 2024: जालोर-सिरोही सीट पर 9 बार बाहरी उम्मीदवार बने MP, 4 बार बूटा सिंह ने जीता चुनाव

22.89 लाख मतदाताओं वाले जालोर-सिरोही अनुसूचित जाति-जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है. इनकी संख्या 8 लाख से अधिक है. वहीं सामान्य वर्ग में कलबी(पटेल) तीन लाख, देवासी 2.10 लाख, मूल ओबीसी 4 लाख, राजपूत व भोमिया 1.50 लाख, ब्राह्मण व वैश्य सहित अन्य सवर्ण 3.20 लाख व मुस्लिम नब्बे हजार प्रमुख मतदाता है. 

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Lok Sabha Election 2024: जालोर-सिरोही सीट पर 9 बार बाहरी उम्मीदवार बने MP, 4 बार बूटा सिंह ने जीता चुनाव

Lok Sabha Election 2024: जालोर-सिरोही लोकसभा संसदीय क्षेत्र की जनता ने 69 सालों में 16 सांसदों को जिताकर संसद भेजा है. इस सीट पर तीन बार प्रत्याशी नजदीकी मुकाबले में 10 हजार से भी कम मतों से जीतकर सांसद बने हैं. इसमें सबसे कम मतों से जीतने और सबसे कम समय के लिए सांसद रहने का रिकॉर्ड पारसाराम मेघवाल के नाम है.

जालोर-सिरोही संसदीय सीट पर पहली बार चुनाव सन् 1957 में हुए थे. इस सीट पर कांग्रेस का प्रत्याशी सर्वाधिक 8 बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं, जबकि 1989 में पहली बार इस सीट से खाता खोलने वाली भाजपा लगातार तीन बार जीत का रिकॉर्ड कायम किया है.

हालांकि हर बार जीत हार को लेकर भी लोकसभा चुनाव के दौरान जालोर-सिरोही सीट पर रोचक मुकाबला होता रहा है, लेकिन प्रथम बार 2014 के दौरान भाजपा प्रत्याशी देवजी पटेल ने 3 लाख 81 हजार 145 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव हराकर इस सीट की रिकॉर्ड जीत दर्ज की है.

जालोर ने देश को गृहमंत्री भी दिया

21 मार्च 1934 को जन्में सरदार बूटासिंह जालोर-सिरोही से चार बार सांसद रहे. तीन बार कांग्रेस से और एक बार निर्दलीय के रूप में. पहली बार 1984 में जालोर से चुनाव जीते और केन्द्र में राजीव गांधी सरकार (1984-89) में कृषि और फिर देश के गृहमंत्री भी बने. जालोर से चुनाव जीत कर देश के सबसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं. बूटासिंह बिहार के राज्यपाल भी रहे

फिलहाल, 85 साल के हो चुके बूटासिंह दिल्ली में घर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. वैसे तो साल 2014 में भी कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर बूटासिंह ने दुबारा निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन 1,75,344 वोट लेने के बावजूद हार गए और तीसरे स्थान पर रहे. भाजपा प्रत्याशी देवजी पटेल ने 5,80508 वोट लेकर चुनाव जीता. कांग्रेस प्रत्याशी उदयलाल आंजणा 1,99363 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे.

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण की पत्नी वी.सुशीला भी एक बार यहां से चुनाव जीतने में सफल रही. पार्टी अध्यक्ष रहते बंगारू लक्ष्मण यहां से वर्ष 1999 में बूटासिंह के सामने पराजित हो चुके है.

ये है सीट जातीय समीकरण

22.89 लाख मतदाताओं वाले जालोर-सिरोही अनुसूचित जाति-जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है. इनकी संख्या 8 लाख से अधिक है. वहीं सामान्य वर्ग में कलबी(पटेल) तीन लाख, देवासी 2.10 लाख, मूल ओबीसी 4 लाख, राजपूत व भोमिया 1.50 लाख, ब्राह्रमण व वैश्य सहित अन्य सवर्ण 3.20 लाख व मुस्लिम नब्बे हजार प्रमुख मतदाता है. 

ऐसा रहा है जालोर-सिरोही का इतिहास

जालोर लोकसभा क्षेत्र आजादी के बाद से ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी. यहां हुए कुल 16 लोकसभा चुनाव में 8 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा, 1 बार स्वतंत्र पार्टी, 1 बार भारतीय लोकदल और 1 बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.  पिछले 3 बार से जालोर सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है. जालोर सीट शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन 2009 के परिसीमन में इस सीट के सामान्य होने के बाद से लगातार 2 बार से भाजपा के देवजी पटेल यहां से सांसद है. 

4 बार सरदार बूटा सिंह ने दर्ज की जीत

जालोर-सिरोही के लोगों का बाहरी प्रत्याशियों से विशेष लगाव रहा है. अब तक 9 बार यहां के लोग बाहरी प्रत्याशी को अपना प्रतिनिधि बना संसद में भेज चुके है. यहीं कारण है कि कांग्रेस के दिग्गज बूटासिंह पंजाब से यहां आकर चुनाव लड़े और सफल रहे. वहीं, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण की पत्नी वी.सुशीला भी एक बार यहां से चुनाव जीतने में सफल रही. पार्टी अध्यक्ष रहते बंगारू लक्ष्मण यहां से वर्ष 1999 में बूटासिंह के सामने पराजित हो चुके है. अमूमन हर चुनाव की रोचक यादें जेहन में रहती हैं लेकिन कुछ चुनाव इतिहास बना जाते हैं.

1998 के चुनाव में जालोर-सिरोही सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव जीते सरदार बूटासिंह व अन्य दलों की मदद से देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी. इसी वजह से बूटासिंह को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट में लिया गया था.

जालोर-सिरोही सीट के लिए 1998 और 2004 में हुए चुनाव भी इनमें से एक है. 1998 के चुनाव में जालोर-सिरोही सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव जीते सरदार बूटासिंह व अन्य दलों की मदद से देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी. इसी वजह से बूटासिंह को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट में लिया गया था. हालांकि, इसी बूटासिंह को 2004 के चुनाव में भाजपा की सुशीला बंगारू ने मात दे दी, जिसके बाद बूटासिंह कभी संसद नहीं पहुंच पाए.

वर्ष 1999 के चुनाव में सुशीला के पति बंगारू लक्ष्मण को बूटासिंह ने ही चुनाव में हराया. वैसे तो सरदार बूटासिंह जालोर-सिरोही संसदीय क्षेत्र से 1984 और 1991 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत चुके थे. लेकिन 1996 के चुनाव में स्थानीय का मुद्दा उठने पर कांग्रेस ने स्थानीय चेहरे के रूप में पारसाराम मेघवाल को टिकट दिया, वो चुनाव जीत गए.

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