Rajasthan News: राजस्थान के चूरू जिले में स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन माना जाने वाला ऊंटनी का दूध और उससे बने उत्पाद आइसक्रीम, चाय-कॉफी, स्मूदी और दही आसानी से उपलब्ध होने वाले हैं. यह रेगिस्तान का जहाज और राजस्थान के राज्य पशु ऊंट के संरक्षण के उद्देश्य से किया जा रहा प्रयास है. ऊंटों की स्थिति को देखते हुए चूरू के जिला कलक्टर अभिषेक सुराणा ने ऊंट पालन को प्रोत्साहन देने और ऊंट पालकों की आय बढ़ाने के लिए कार्ययोजना तैयार कर काम करने के निर्देश दिए हैं. पशुपालन विभाग और सरदारशहर डेयरी की ओर से इस योजना पर काम किया जा रहा है.
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. ओमप्रकाश ने बताया,"प्राचीन समय से ही देश में ऊंट का उपयोग खेती और भार ढोने के काम में प्रमुखता से किया जाता रहा है, लेकिन वर्तमान में मशीनीकरण ने ऊंट की उपयोगिता को कम किया है और ऊंटपालकों के लिए ऊंट को रख पाना एक चुनौती बन गया है."
ऊंटपालकों के लिए आयोजित होगी कार्यशाला
वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. निरंजन चिरानिया ने बताया कि इसी सिलसिले में जिला कलक्टर अभिषेक सुराणा की अध्यक्षता में 23 नवंबर (शनिवार) को क़ृषि विज्ञान केंद्र सरदारशहर में डॉ. वी के सैनी के निर्देशन में ऊंटपालकों की कार्यशाला भी आयोजित की जा रही है. कार्यशाला में ऊंटपालकों को ऊंटनी के दूध के रखरखाव और इससे बनने वाले उत्पादों को बनाने और उसके विक्रय के बारे में जानकारी दी जाएगी.
ऊंटनी का दूध होता है बहुत पौष्टिक
डॉ. निरंजन चिरानियां ने बताया कि ऊंटनी का दूध बहुत पौष्टिक और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला माना जाता है. ऐसे में इस दूध और इससे बने उत्पादों का उपयोग जन स्वास्थ्य के लिए भी काफी कारगर साबित होगा. उन्होंने बताया कि ऊंटनी के दूध से दही जमाना काफी मुश्किल होता है, लेकिन नई तकनीक का उपयोग कर दही जमा लिया जाता है, तो वह बहुत पौष्टिक माना जाता है. इस कार्यशाला में चूरू जिले के किसानों को इस दूध से दही जमाने की विशेष तकनीक बताई जाएगी.
ऊंटनी के प्रसव पर दिए जाएंगे 20 हजार रुपये
निरंजन चिरानियां ने आगे बताया कि इस कार्ययोजना के तहत बीकानेर में संचालित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र और राजस्थान डेयरी फेडरेशन तथा पंडित दीनदयाल मेडिकल कॉलेज चूरू से समन्वय कायम कर समय-समय पर योजना में तकनीकी सहयोग प्राप्त किया जाएगा. ऊंटपालकों को भी आवश्यक तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी.
उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य सरकार की ओर से ऊंटनी के प्रसव पर दो किश्तों में ऊंटपालकों को ऊंटनी के प्रसव पर 10 हजार रुपए की राशि बतौर सहायता दी जा रही थी, जिसे बढ़ाकर 20 हजार रुपये कर दिया गया है. ऊंटनी का दूध फिलहाल पशुपालकों द्वारा टोडिये (ऊंटनी के बच्चे) को पिलाने के अलावा और कोई काम नहीं लिया जाता है.
एक दिन में निकाल सकते हैं 2-3 लीटर दूध
डॉ. निरंजन ने बताया कि इसलिए पशुपालक दूध उत्पादन की मात्रा पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं. जबकि मादा ऊंटनी को उचित पोषण देकर दुग्ध उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है. उन्होंने बताया कि प्रति ऊंटनी से एक दिन में करीब 2-3 लीटर दूध निकाला जा सकता है.
इस दूध को डेयरी द्वारा संचालित स्थानीय दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति और दुग्ध संग्रहण केन्द्र के माध्यम से वैज्ञानिक विधि द्वारा संग्रहित कर डेयरी सरदारशहर में इकट्ठा किया जाएगा. इसके बाद विशेषज्ञ सलाह के अनुसार दुग्ध का संग्रहण कम तापमान पर किया जाएगा, जहां से प्रोसेसिंग के पश्चात उसे संबंधित एजेंसी और चिकित्सालयों को भिजवाया जाएगा.
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