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Analysis: समर्थकों को टिकट, 60 सभाएं; राजस्थान में वसुंधरा ने BJP खेमे से बटोरी सबसे अधिक सुर्खियां, समझे सियासी फैक्टर

राजस्थान विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने भाजपा खेमे से सबसे अधिक चुनावी सभाएं की. वसुंधरा राजे ने करीब 60 चुनावी जनसभाएं कीं. साथ ही उन्होंने नई रणनीति के तहत सभी वर्गों और समुदायों से संपर्क बढ़ाया.

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Analysis: समर्थकों को टिकट, 60 सभाएं; राजस्थान में वसुंधरा ने BJP खेमे से बटोरी सबसे अधिक सुर्खियां, समझे सियासी फैक्टर
राजस्थान में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पूर्व सीएम वसुंधरा राजे.

Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को 75.45 प्रतिशत वोटिंग हुई. 2018 की तुलना में इस बार 0.8 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ. मतदान के बाद अब नतीजों का इंतजार है. 3 दिसंबर को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव का रिजल्ट जारी होगा. 3 दिसंबर का दिन तय करेगा कि राजस्थान में राज बदलेगा या रिवाज. मालूम हो कि प्रदेश में हर 5 साल बाद राज बदलने की परंपरा रही है. हालांकि इस बार सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का दावा है कि प्रदेश में राज नहीं रिवाज बदलेगा.

कांग्रेस की ओर से चुनावी मैदान में सबसे ज्यादा दारोमदार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कंधों पर था. दूसरी तरफ भाजपा खेमे से शुरुआत में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को साइडलाइन किए जाने की चर्चा तो चली लेकिन चुनावी प्रचार अभियान खत्म होते-होते वसुंधरा फिर से मेनलाइन में आ गईं. इस चुनावी अभियान में भाजपा खेमे से वसुंधरा राजे ने सबसे अधिक सुर्खियां बटोरी. इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. आइए तसल्ली से जानते हैं राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में वसुंधरा के उभार की कहानी. 

शुरुआत वसुंधरा को साइडलाइन किए जाने से

राजस्थान की 200 सीटों पर विधानसभा चुनाव के ऐलान के पहले भाजपा ने पूरे प्रदेश में परिवर्तन यात्रा निकाली. प्रदेश की चार दिशाओं से निकली इस यात्रा ने सभी सीटों को कवर किया. इस यात्रा में भाजपा के केंद्रीय नेता- जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गड़करी और अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आए. इस यात्रा में राजस्थान के भाजपा नेताओं में प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल सहित अन्य नेता तो खूब नजर आए. लेकिन वसुंधरा राजे बहुत कम दिखी. इसी के साथ वसुंधरा को साइडलाइन किए जाने की चर्चा शुरू हुई. 

भाजपा प्रत्याशियों की पहली लिस्ट ने भी वसुंधरा को नकारा

परिवर्तन यात्रा की समाप्ति और चुनाव की घोषणा के बाद जब भाजपा ने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की, तब भी राज्य की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के दबदबे को नकारा गया. इस लिस्ट में भाजपा ने वसुंधरा के कई समर्थकों के टिकट काटे. सांसदों को विधायकी के चुनावी मैदान में उतारने सहित कई बड़े फैसले लिए. लेकिन पहली लिस्ट जारी होने के बाद भाजपा द्वारा घोषित प्रत्याशियों का अलग-अलग जिलों में अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा जमकर विरोध हुआ. जिन सांसदों को चुनावी  मैदान में उतारा गया था उनके खिलाफ भी जमकर विरोध-प्रदर्शन हुए.

फिर भाजपा ने बदला पैटर्न

प्रत्याशियों की पहली लिस्ट पर हुए विरोध के बाद भाजपा ने पैटर्न बदला. दूसरी-तीसरी के बाद अंत तक घोषित सभी उम्मीदवारों में वसुंधरा राजे की राय चली. उनके समर्थकों को टिकट दिया गया. पहली लिस्ट में वसुंधरा के करीबी नरपत सिंह राजवी का टिकट काट दिया गया था. लेकिन बाद में भाजपा ने डैमेज कंट्रोल करते हुए उन्हें चित्तौड़गढ़ से चुनावी मैदान में उतारा.

फिर पार्टी की हर बैठक में वसुंधरा फ्रंट से लीड करती नजर आई. पार्टी ने उन्हें अपना फेस तो नहीं घोषित किया लेकिन वसुंधरा अपने पुराने रुतबे में लौटती नजर आईं. 

साइडलाइन की चर्चा के बीच क्या कर रही थी वसुंधरा

राज्य में चुनाव के बीच जब वसुंधरा को साइडलाइन किए जाने की बात चल रही थी तब वसुंधरा खुद शांत थी. वो समझदार राजनेता की तरह अपने तरफ से बिना कुछ बोले शांति से लोगों के संपर्क में बनी रही. परिवर्तन यात्रा की शुरुआत से एक दिन पहले वसुंधरा राजे देवदर्शन यात्रा पर निकली. प्रदेश के चार अलग-अलग जिलों में स्थित मंदिरों में पूजा की. आनन-फानन में बने वसुंधरा के इस प्रोग्राम को उनके समर्थकों और चाहने वालों ने हिट कर दिया.

वसुंधरा जहां भी गई उन्हें जनता का भरपूर प्यार मिला. इससे महारानी का हौसला बढ़ा और फिर चुनावी अभियान में वसुंधरा ने कुछ ऐसा किया वो भाजपा खेमे की नंबर-1 नेता बन गई. 

जमीनी स्तर तक किया काम, लोगों तक पहुंचीं राजे

राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे की भाजपा संगठन में पकड़ किसी से छिपी नहीं है. उन्होंने इस चुनाव की शुरुआत हल्के तौर पर की हो लेकिन एक रणनीति के तहत काम करते हुए अंत में वो पुराने रूप में नजर आ रही हैं. वसुंधरा ने इस चुनाव में जमीनी स्तर पर काम किया. स्थानीय कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क बनाया. जितना संभव हो सका, उतने लोगों तक पहुंच बनाई. चुनावी अभियान में भी वसुंधरा राज्यभर के हर क्षेत्र तक पहुंचीं. पार्टी के सीनियर नेताओं से शिकायत किए बिना वो लोगों से संपर्क बनाने में जुटी रहीं. 

भाजपा खेमे से सबसे ज्यादा करीब 60 चुनावी सभाएं राजे ने की

राजस्थान विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने भाजपा खेमे से सबसे अधिक चुनावी सभाएं की. वसुंधरा राजे ने करीब 60 चुनावी जनसभाएं कीं. राज्य में प्रमुख उम्मीदवारों के समर्थन में चुनावी सभाएं कीं. इस दौरान कांग्रेस सरकार और उनकी विफलताओं को खूब उजागर किया. साथ ही राजे ने राज्य के सभी समुदायों के साथ जुड़ने की कोशिश भी की. झालावाड़, हनुमानगढ़, बिलवाड़ा, बीकानेर, अनूपगढ़, राजगढ़ सहित अन्य जगहों पर हुई चुनावी सभाओं में वसुंधरा भारी भीड़ जुटाने में सफल रहीं.

नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरीं महारानी

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 के प्रचार अभियान पर गौर करें तो यह देखने को मिलता है कि इस बार राजे नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरीं. वो किसानों से लेकर संकटग्रस्त महिलाओं तक पहुंचीं. बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत पहुंच बनाने के प्लान पर काम किया. महिलाओं की पसंद का भी वसुंधरा ने ध्यान दिया. आधी आबादी को अपने साथ जोड़ने के मुद्दें पर वसुंधरा लगातार काम करती नजर आई. राजस्थान के महिला सुरक्षा मुद्दें पर वसुंधरा लगातार हमलावर रहीं. महिलाएं भी हर जगह 'महारानी को सीएम बनाना है' के नारे लगाती दिखीं.

सीएम फेस की पहली पसंद, नतीजे तय करेंगे भविष्य

राजस्थान में मतदान से पहले हुए ओपिनियन पोल में भी वसुंधरा राजे को भाजपा की ओर से बतौर मुख्यमंत्री सबसे ज्यादा पंसद किया गया. भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों को मिला दें तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए सीधी फाइट गहलोत और वसुंधरा में ही दिखी. पायलट तीसरे स्थान पर दिखे. राज्य के सियासी पंडितों की माने तो 3 दिसंबर को आने वाला रिजल्ट वसुंधरा का राजनीतिक भविष्य तय करेगा. यदि वसुंधरा की मेहनत रंग लाई तो उन्हें फिर से बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. 

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