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'पैकेज' को लेकर परेशान समाज

Dev Sharma
  • विचार,
  • Updated:
    मई 19, 2025 14:42 pm IST
    • Published On मई 19, 2025 14:37 pm IST
    • Last Updated On मई 19, 2025 14:42 pm IST
'पैकेज' को लेकर परेशान समाज

18 मई,2025 (रविवार) को प्रात:काल अत्यंत दुखद सूचना प्राप्त हुई. इसने सबको झकझोर कर रख दिया -  मुझे भी और समाज को भी. मेरे लिए ये एक निजी दुख की भी सूचना थी क्योंकि 1987 से इंजीनियरिंग शिक्षा के मेरे साथी और वर्तमान में बिजली विभाग में अधिशासी अभियंता के सुपुत्र ने आत्महत्या कर ली थी. मेरे मित्र का बेटा स्वयं इंजीनियरिंग स्नातक था. उसकी आत्महत्या का कारण था - मात्र 1 वर्ष की बेरोजगारी एवं तथाकथित डिप्रेशन. यहां से सवाल उपस्थित होता है कि क्या है यह डिप्रेशन, और कहां से आता है और क्यों आता है?

आज के दौर में डिप्रेशन का एक बड़ा कारण सैलरी-पैकेज भी हो गया है. अक्सर ऐसी बातें सुनाई देती हैं - शर्मा जी का बालक गूगल में है, उसका 6 करोड़ का पैकेज है, मात्र 30 वर्ष की उम्र में. अग्रवाल साहब की बिटिया माइक्रोसॉफ्ट में है, उसे नौकरी करते 2 वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए हैं और उसका पैकेज 4 करोड़ पर पहुंच गया है. कुल मिलाकर जिसका पैकेज जितना बड़ा, उसकी सफलता उतनी बड़ी. आज बस एक यही मापदंड रह गया है वर्तमान समाज में जीवन का. कम पैकेज वालों का जीना दुश्वार है,  तो फिर बेरोजगार तो बड़ा अपराधी हो गया, बेचारा हो गया, अवांछित हो गया.

जिसका पैकेज जितना बड़ा, उसकी सफलता उतनी बड़ी. आज बस एक यही मापदंड रह गया है वर्तमान समाज में जीवन का. कम पैकेज वालों का जीना दुश्वार है,  तो फिर बेरोजगार तो बड़ा अपराधी हो गया, बेचारा हो गया, अवांछित हो गया.

समाज के हालात यह हैं कि संबंध एवं भावनाओं को पूर्णतया दरकिनार कर दिया गया है. विडंबना यह है कि व्हाट्सएप-ग्रुप तथा फेसबुक पर लाइक की संख्या भी व्यक्ति का पैकेज और राजनीतिक रसूखात ही निर्धारित करते हैं. सामाजिक-समरसता, सौहार्द तथा सामंजस्य जैसे सभी शब्द निरर्थक हैं. वर्तमान समाज की सोच के अनुसार कम-पैकेज वाले असफल व्यक्ति ही इनका उपयोग करते हैं.

आईटी क्षेत्र में सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों के पैकेज की बड़ी चर्चा होती है

आईटी क्षेत्र में सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों के पैकेज की बड़ी चर्चा होती है
Photo Credit: Unsplash

पैकेज का पैमाना

कोई 22-23 वर्षीय नवयुवक कैसे हताश हो सकता है? उसकी हताशा के लिए वह स्वयं तो जिम्मेदार हो ही नहीं सकता? इसके लिए तो सिर्फ और सिर्फ वर्तमान क्रूर सामाजिक व्यवस्था ही जिम्मेदार है, और जिम्मेदार हैं हम सभी. आज का समाज कमजोर को संबल देना ही भूल गया है. जीवन-दर्शन, जीवन-मूल्य, नेपथ्य की बात हो चुके हैं. जंगलराज है, जिसमें कमजोर को तो मरना ही पड़ेगा. या तो खुद मर जाए या फिर कोई ताकतवर आकर मार देगा.

सफलता एवं असफलता इस जीवन के दो अभिन्न अंग हैं. श्वेत और स्याह का तो एकांतर क्रम है. यह जीवन है, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं, यहां तो सुख और दुख दोनों में साथ खड़े होना होगा. जीवन में जो निरर्थक है,अस्थायी है, भोग-विलास है उसे सार्थक सिद्ध करने के अमानवीय प्रयास छोड़ने ही होंगे. 

पैकेज अस्थायी ही है, समझना ही होगा. आज है, कल नहीं होगा. तो फिर समाज हित में सभी को इस पैकेज का यशोगान त्यागना होगा.

पैकेज अस्थायी ही है, समझना ही होगा. आज है, कल नहीं होगा. तो फिर समाज हित में सभी को इस पैकेज का यशोगान त्यागना होगा. सह-अस्तित्व की मूल भावना पर लौटना ही होगा. समझना होगा कि पैकेज पुरुषार्थ नहीं है और ना ही व्यक्ति की काबिलियत मापने का पैमाना.

पैकेज सिर्फ समय का फेर है-
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान। 
भीलां लूटी गोपियां वही अर्जुन वही बाण।।

जीवन की वास्तविकता

समाज के सभी प्रबुद्ध-जनों से आग्रह है कि बच्चों से,युवाओं से सिर्फ करियर की, कमाई की और पैकेज की बात नहीं करें. प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य में उन्हें पहाड़ों,नदियों,जंगलों,चांद-तारोंसे भी रूबरू कराने की कोशिश करें. शाम को मंदिरों में होने वाली आरती में घंटे के ब्राह्मनाद के संगीत का आस-पड़ोस के बच्चों के साथ सामूहिक आनंद लें, जैसे हमारे माता-पिता ने जीवन-पर्यंत लिया.

पेड़-पौधों और तैराकी के आनंद के लिए निजी फार्म हाउस और स्विमिंग पूल की अनिवार्यता को दिमाग से निकल फेंके. जीवन की एकरूपता को समाप्त करने के लिए विदेश-यात्रा की अनिवार्यता समझने वालों की बद-दिम़ागी के कचरे को अधिकार पूर्वक निकाल फेंकना वर्तमान की आवश्यकता ही नहीं अपितु अनिवार्यता भी है. जीवन की वास्तविकता को समझने की और समझाने की आवश्यकता है.

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

लेखक परिचयः देव शर्मा  कोटा  स्थित इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और फ़िज़िक्स के शिक्षक हैं.  उन्होंने 90 के दशक के आरंभ में कोचिंग का चलन शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह शिक्षा संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं.

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